किसने चुराई इन बादलों की बूँदें ?
कैसे कहाँ कब विचार नवीन आते
कैसे अचानक उन्हें हम सोच जाते
आ फूट सोच मन में बन मेघ छाये
छा छाप भाव मत एक अनेक लाये
कैसा प्रभाव हम पे यह सोच डाले
जागा हुआ मन प्रयोज्य प्रकाश पा ले
बातें करें जब कभी हम आप से ही
आनंद लाभ हित निश्चित बूझ लें ही
संसार में पर कहीं मन हों झुकाये
मेधा निजी तब वहीं जन को न भाये
छाये विचार मन में दृढ़ हैं लगे ना
विश्वास सोच मन की पर है जगे ना
आये विचार पर घोर घटा न छाई
सूखा पड़ा मन नमी किसने चुराई
- कालपाठी