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मेरे प्रिय भारत

भारत ह्रदय में और बसता जा रहा है जान तू
आनंद देते रोज़ चलता जा रहा है जान तू

शोरगुल में तेरे छिपी संकल्पकों की आहटें
कोई शिखा तो रोज़ चढ़ता जा रहा है जान तू

माधुर्य है छाया हुआ आबो हवा तेरी बना
दिलकश लयों को रोज़ बरसा जा रहा है जान तू

ऐसा नहीं हैं ग़म नहीं संसार में तेरे कभी
ग़म में निभाना रोज़ समझा जा रहा है जान तू

हर प्रश्न का तुझमें मिले सुलझाव मेधा से भरा
उलझे पड़ों को रोज़ सुलझा जा रहा है जान तू

करुणामयी आचार तेरा गांव शहर निखारता
मोहित मनों को रोज़ करता जा रहा है जान तू

प्राचीन काल अनंत तुझमें है झलकता आज भी
इतिहास भारत रोज़ लिखता जा रहा है जान तू

- कालपाठी



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