एक लघु जीव से...
प्राणी मेरे घर उतर के था अनायास आया
साथी मेरे इस भ्रमर को पास मैंने बुलाया
कैसे दोनों कब कब कहाँ साथ थे वो भुलाया
दोनों यात्री सतत जग में आज साथी सुझाया
पीढ़ी पीढ़ी अनगिनत यों हैं मिली मान साथी
बीता होगा मिलन पल यों ही किसे भान साथी
दाना पानी सुलभ सम ही ढूंढ लें मीत मेरे
पाए कोई न बढ़त युगों हो गए जीवते रे
मापा जाए किस तरह जो लें अहंकार बांटें
ढूँढूँ कोई छवि चलन जो ले जिसे काल छांटे
तेरी मेरी विविध विधि है जीव संतोष की रे
दोनों तो हैं सुविकसित है दौड़ता कौन धीरे
लांघी ऊँची कुल समय में कौनसी है चढ़ाई
जीते जीते युग युग बिता के कड़ी है बनाई
छोटी सी भी न कर त्रुटि हैं काल के साथ भागे
वंशों के हैं वहन हम है तू न पीछे न आगे
- कालपाठी